नई दिल्ली. ऊपर दी गई तस्वीर राजस्थान के बांसवाड़ा की है। यह तस्वीर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर भरत कंसारा ने अपने कैमरे में कैद की है। शहर के बाई तालाब क्षेत्र में कुछ गांव के बच्चे खेल रहे थे। हाथों में बड़े साइज के पत्ते थे। जैसे ही उन्होंने कार का शीशा उतार कर देखा तो ये बच्चे और स्थानीय भाषा वागड़ी में एक दूजे को कहने लगे, ‘मोड़को बंद कर, ने तो कोरोनू पैई जाइगा’। यानी कि इन पत्तों से मुंह को ढक लो, वरना कोरोना हो सकता है। इस तरह की विभिन्न तस्वीर देशभर के अन्य राज्यों से आई हैं। इन सभी में मौसम में हो रहे बदलाव, लॉकडाउन में ढील के बाद शुरू हुई जिंदगी, श्रामिकों का संघर्ष दर्शाती तस्वीरें शामिल हैं।
झालावाड़ के डग में 2 महीने की बच्ची पर मौत बनकर गिरीं महिलाएं

आपकों बता दें, भास्कर ऐसी फोटो प्रकाशित नहीं करता है, लेकिन जरा से झगड़े में एक मासूम की मौत के प्रति संवेदना के लिए यह कदम उठाया है। घटना और तस्वीर राजस्थान के डग क्षेत्र के झालावाड़ की है। यह डग स्थित सामुदायिक अस्पताल में रखा दो माह की मासूम का शव है। घटना के मुताबिक, पिपलिया खुर्द गांव में शुक्रवार रात 8 बजे सरकारी नल पर पानी भरने को लेकर विवाद हुआ था। इसमें प्रेम पटेल की पत्नी निर्मला और राजू की पत्नी वंदना लड़ते हुए पलंग पर गिर पड़ीं। खाट पर वंदना की दो माह की दुधमुंही बच्ची सो रही थी। इनके नीचे दबने से मासूम बच्ची अचेत हो गई। डग सामुदायिक अस्पताल के डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
लॉकडाउन के 68 दिन बाद घर जाने को मिली बस, बेटी मुस्कुराई तो दर्द भूलकर मां भी हंस पड़ी

यह फोटो, पंजाब के संगरूर की है। यहां अभी भी मजदूरों का पलायन जारी है। सरकार खुद लगभग 6 लाख लोगों को ट्रेनों से उनके गृह राज्य तक पहुंचाने के प्रबंध कर चुकी है। ऐसे ही एक परिवार को शनिवार को संगरूर में बस में बैठाया गया और मासूम को फूल दिया गया। फूल देखकर बच्ची मुस्कुरा उठी। बच्ची का मुस्कुराना देखकर मां का चेहरा लॉकडाउन के दर्द को भूल गया।
यह बच्चा अभी मां की दुआ ओढ़े हुए है...

फोटो पंजाब के अमृतसर की है। ये राजकुमारी पाल हैं, जो शनिवार को घर वापसी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए अमृतसर में लिली रिजॉर्ट के बाहर बैठी हैं। नीचे तपता फर्श और ऊपर चिलचिलाती धूप है। ऐसे मेंं राजकुमारी पाल की गोद में लेटा उनका बेटा दूध पी रहा है। मां की गोद में महफूज इस बच्चे को न कोरोना का डर है और न घर जाने की चिंता, क्योंकि वह दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह, अपनी मां की गोद में है। किसी बच्चे के लिए मां अभेद्य दुर्ग की तरह है, जहां वह खुद को सबसे सुरक्षित महसूस करता है। शायद इसी के चलते प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राणा ने लिखा है, ‘‘छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको, यह बच्चा अभी मां की दुआ ओढ़े हुए है...।’’
घर वापसी की उम्मीद में धूप में बैठकर ट्रेन का इंतजार करते मजदूर

यह फोटो पंजाब के लुधियाना की है। लॉकडाउन में तमाम छूट देने के बावजूद जिले से प्रवासी मजदूर लगातार पलायन कर रहे हैं। शनिवार को चलाई गई आठ श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से करीब 13 हजार मजदूरों को उनके गांवों की तरफ रवाना किया गया। इससे पहले ये लोग स्टेडियम में चिलचिलाती धूप में बैठे रहे। धूप से बचने के लिए कोई चादर तो कोई टेबल के नीचे बैठ कर अपना नंबर आने का इंतजार करता रहा।
कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाने के लिए लोगों ने पुरी मंदिर के सामने गाया ‘बंदे उत्कल जननी’ गीत

यह फोटो उड़ीसा और पुरी स्थित देवधाम जगन्नाथ मंदिर का है। यहां कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे योद्धाओं का देशभर में सम्मान किया जा रहा है। इनमें डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी , पुलिसकर्मी और अन्य लोग भी शामिल हैं। यहां बड़ी संख्या में लोग कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाने के लिए एकजुट हुए। इन सभी लोगों ने वहां का राज्यगीत ‘बंदे उत्कंल जननी’ गाकर योद्धाओं का सम्मान बढ़ाया और सोशल डिस्टेंसिंग का खासा ख्याल रखा।
दसूहा-टांडा हाईवे का मनोरम दृश्य.....

यह फोटो पंजाब के होशियारपुर का है। यहां 2 घंटे बारिश हुई, तापमान 31 डिग्री पहुंच गया। शनिवार को सुबह 10 बजे के बाद से ही घटाएं छाने लगी थीं, शाम होते ही 4 से 6 बजे तक हुई बारिश से लाेगाें काे गर्मी से राहत मिली। मौसम विभाग के मुताबिक रविवार को तेज आंधी और बारिश के आसार हैं, तापमान 28 डिग्री तक पहुंच सकता है।
राहत के बादल...

कई दिनों तक शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी के बाद शनिवार को आसमां में राहत के बादल दिनभर छाए रहे। सुबह से ही नम मौसम के बीच हवाएं चलने से मौसम और भी सुहावना हो गया। हालांकि, बारिश नहीं हुई, लेकिन तापमान 5.3 डिग्री सेल्सियस लुढ़ककर 31.7 डिग्री पर आ गया। जिससे लोगों को राहत मिली। मौसम विभाग की मानें तो रविवार सुबह बारिश के आसार बन रहे हैं। वहीं सप्ताहभर अधिकतम 35 डिग्री तापमान बना रहेगा।
रेलवे ब्रिज का पिलर घर, गर्डर की छत

ओडिशा के संबलपुर से आए 15 मजदूर शहर में मजदूरी कर गुजारा कर रहे थे। लॉकडाउन में काम छूटा और ट्रेन-बसें बंद हुईं तो घर नहीं लौट पाए। कुछ दिन शनि मंदिर के आसपास डेरा डाला। मजबूरी में जान जाने का डर भूल गए, लगभग डेढ़ महीने से इन लोगों ने केलो नदी पर बने रेलवे ब्रिज के पिलर पर घर बसा लिया। ये प्रवासी पटरी के गर्डर को छत मानकर जान की परवाह किए बगैर यहीं रहते हैं। 3-4 परिवारों के साथ छोटे बच्चे भी हैं। पिलर की ऊंचाई लगभग 35 फीट है। दिनभर ट्रेन गुजरती हैं, हमेशा जान का खतरा बना है। स्टेशन मैनेजर पीके राउत ने कहा, पता नहीं था, कल आरपीएफ और पुलिस की मदद से इन्हें हटाएंगे।